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बेमानी जीवन / उमा अर्पिता
Kavita Kosh से
न धूप खिलती है,
न बदरी छाती है
जब से तुम गए हो
यहाँ कुछ भी तो नहीं होता--
जहाँ कुछ भी न घटता हो
वहाँ जीवन का
घटते चले जाना
कितना बेमानी होता है...!