भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बॉंटना चाहता है मन / संगीता गुप्ता

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


बाँटना चाहता है मन
इस शरद ऋतु को
तुम्हारे साथ
इसकी खुनक, महक मस्ती
और तुम्हें
भरना चाहती हूँ
बाँहों में अपनी
और हॅंसना चाहती हूँ
फिर से
बे - बात, तुम्हारे साथ
भीगी घास पर नंगे पाँव
चलना चाहती हूँ
बेपरवाह
देखना चाहती हूँ
सुबह सुबह
उग रहे सूरज
और खिलते
नन्हें फूल को
तुम्हारे साथ