बोरोबुदुर के प्रति / मृत्युंजय कुमार सिंह
बुद्ध, तुम्हें अब लोग बेचना चाहते हैं!
क्रियाहीन, भावशून्य, समाधिस्थ
तुम्हारी छवि को
इन्होंने इश्तेहार बनाया है,
अब तुम भी उपभोग की वस्तुओं की तरह
दुकानों में सजाये जावोगे
या लोगों के वस्त्र-आभूषण पर चिपके
किसी पब या बार में
नाचते नज़र आवोगे।
तुम्हारे अरूपधातुवाले* गुम्बद पर
नंगा खडा एक तड़ित-चालक
कब तक आकाश से लड़ेगा?
बादलों की आड़ में कब तक
बिजली और विध्वंस से बचेगा?
बुद्ध, तुम इनको नहीं जानते!
लिंकन, गाँधी, मंडेला
ईसा, मूसा और राम,
सबका लगाया है इन्होंने दाम
किसी तरह बस तुम बचे थे
सम्मान और संस्कार के अवलेप में
कहीं छूटे, दबे थे
या फिर इतिहास ने तुम्हें
वह स्थान नहीं दिया
जहाँ वितर्कों के दंगे आम बात हैं
चक्र, गदा, तीर
भाले, त्रिशूल लिए सूरमा-वीर
देवी-देवताओं की भी अलग-अलग जात है।
राम-रहीम, ईसा-मूसा की महिमा गाते
सदियों से एक-दूसरे को उकसाते
थक गए हैं अब ये लोग
अब इन्हें चाहिए कुछ और
एक नया मुखौटा
कुछ नए वितर्कों का दौर।
विश्व की सरकारों ने, इसलिए
राजनयिकों का एक जत्था
बोरोबुदुर भेजा है,
साझे में व्यवसाय का
एक नया तरीका सहेजा है।
'नमो बुद्धाय' का नारा भी
इन्होनें रट लिया है।
टूटती-ढहती आस्था से
तुम्हारे नाम पर चलती संस्था से
हर रोज़ यहाँ तैयार हो जाती है
एक नयी क़ौम, गाइडों की
जो भूत-प्रेत की लीला-सा बखान करते हैं
ललितविस्तर और जातक कथाएं,
नए-नए प्रसंगों की
विचित्र विसंगतियां
और अद्भुत समतायें।
पता नहीं कितना और क्या है सत्य
तुमसे जुड़ी इन कथाओं का,
विश्लेषणों से भरी, रोज़ पकती दुविधाओं का।
बुद्ध सावधान!
इनकी धृष्टता में
तुम्हारे सत्य से ज्यादा बल है,
इनका व्यापारी आज
तुम्हारे ध्यानी कल से
ज्यादा सबल है।
ये घरों में बैठे या हवा में उड़ते
दूसरों की ज़मीन पर
कोहराम मचा सकते हैं
मानवता की समाधि पर
क़त्ले-आम रचा सकते हैं
गाँधी की लाठी से
सत्याग्रह को पीट सकते हैं,
द्रौपदी को कुलटा कहकर
पंचायत में घसीट सकते हैं।
राजनयिकों का ये जत्था
दो वर्ष पर यहाँ आया है
विशाल खान-पान का आयोजन है
यज्ञ के होतृ ने क्या ख़ूब निभाया है;
तुमसे जुड़े मूल्यों और पर्यटन के
ढेर सारे रंगीन सपने भी बुने गए हैं
तुम्हारी जन्म-जयंती के ही नाम पर
तुम्हारे लोगों से छीनकर उनका पारंपरिक उपक्रम
आस्था और मोह,
ये मनाते हैं एक फ़िल्मी समारोह
छः देशों के कलाकारों की मिलीभगत से
रचा जाता है एक आकर्षक व्यामोह
लेकिन इस सबके पीछे
अपना हित और वाणिज्य ही आधार है,
गुणाधर्म** की किम्वदंतियों-सा फैला
हर घर में इक बाज़ार है।
बुद्ध, तुम चकित मत होना!
यदि एक नयी कोंपल-सा फूट आए
तुम्हारा एक नया चेहरा
जिसे चोली और अंगिया पर टांक कर
हो जाए उसका मूल्य दोहरा
प्रजातंत्र और पंचशील ***
विविधता में एकता की दलील
से न तो बनी है शान्ति
ना ही बढ़ा है भाईचारा,
लेकिन हो सकता है, भा जाये लोगों को
तुम्हारे नाम की गयी थोथी अपील।
बुद्ध, हम तुम्हें अब बेचना चाहते हैं!
* बोरोबुदुर के ऊपरी तीन स्तरों को बौद्ध- ब्रह्मांडिकी (कॉस्मोलोजी) के तीन मनःप्रान्तर का प्रतिनिधि माना गया है: नीचे कामधातु (इच्छाओं का जगत), उसके ऊपर रूपधातु (रूप और कायागत अस्तित्व) और सबसे ऊपर अरूपधातु (रूपहीन, कायाहीन अस्तित्व)।
** गुणधर्म तक्षशिला से आए एक गणमान्य बौद्ध दार्शनिक, मनीषी और रूपकार थे जिन्होंने बोरोबुदुर स्तूप की परिकल्पना से लेकर उसके रूपायन तक को साकार किया। इनके बारे में कई तिलस्मी कथाएं वहां के रहने वाले या गाइड बखान करते हैं।
*** इंडोनेशिया में 'प्रजातंत्र' और 'पंचशील' की दुहाई वहां के राजनीतिक और कूटनीतिक कार्यकलापों की मुख्य भाषा है। भारत से प्रेरित ही सही, उन्होंने इसे अपने संविधान का हिस्सा बनाया है। 'भिन्नेका तुङ्गल इका' (यूनिटी इन डाइवर्सिटी) उनका राष्ट्रीय नीतिवाक्य (motto) है।
(इंडोनेसिया के योग्यकर्ता शहर से कोई ४०-४५ मिनट की दूरी पर 'बोरोबुदुर' स्तूप बौद्ध धर्मावलम्बियों की सबसे बड़ी धार्मिक विरासत है। साथ ही ये यूनेस्को की एक world Heritage भी है जहां हर रोज़ सैकड़ों-हज़ारों की संख्या में बौद्ध धर्म के अनुयायी और साधारण सैलानी आते हैं। इस स्थान की लोकप्रियता से प्रेरित होकर इन्डोनेशियन सरकार ने इसे पर्यटन-उद्योग और वाणिज्य का एक अच्छा साधन बनाया और अपने प्रयास को नैतिक मान्यता देने के लिए 'Borobudur Declaration' नामक एक कूटनीतिक ग्रुप की स्थापना की जिसमें ASEAN के छः बौद्ध-धर्म से सिंचित देशों को सदस्य बनाया गया। ये हैं थाईलैंड, म्यांमार, लाओस, वियतनाम, कंबोडिया और इंडोनेशिया। भारत (पहली बार) और जापान दोनों आब्जर्वर (प्रेक्षक) की भूमिका में थे। भारतीय दूतावास का सांस्कृतिक काउंसलर होने के नाते मैं भारत का प्रतिनिधित्व कर रहा था। यूनेस्को भी शामिल था। मूल उद्देश्य था - बुद्ध से जुड़े धरोहरों की रक्षा में सहयोग। लेकिन इस डिक्लेरेशन में पर्यटन-उद्योग में व्यापारिक निवेश और उसकी बढ़ोतरी में सहयोग की बात को विशेष महत्व दिया गया था। पहल यह भी की गई थी कि बौद्ध-धर्म की परंपरा से जुड़े और भी कई ASEAN के सदस्य आ कर जुड़ें। साझे में हर दो वर्ष पर एक कूटनीतिक उत्सव का आयोजन होगा जिसमें सारे देशों के प्रतिनिधि अपना-अपना योगदान ले कर शामिल होंगे।
कूटनीतिक स्तर पर यह एक अच्छी पहल है, लेकिन मुझे इसमें उस भावना की कमी महसूस हुई जो बुद्ध के दर्शन की गरिमा से जुड़ी है। उसी दिन, रात के एकांत में अपने भावों को इस कविता में मैंने लिपिबद्ध किया था।)