भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बोल बम? / मथुरा प्रसाद 'नवीन'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देखो बोलो बम! बोलो बम!
कांधा पर काँवर
हाथ में चिलम
मारो दम
बोलो बम!
गुरू के साथ चेला चटिया,
केकरे जीप, केकरे ट्रेकर
केकरे फटफटिया
जे कर रहले हे
भोला के जलंढ़री
ओकरा ले कठिन नै हे
चोरी या काला बजारी
जे छील रहल हे
गरीब के चाम
ऊ घूम रहल हे
बिना टिकट चारो धाम।