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बोल मेरी मछली / उषा यादव
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					नभ पर काले बादल छाए। 
नाचे मोर पपीहा गाए। 
टप- टप बुँदे गिरें सुहानी,
छप-छप करने जितना पानी।
आसमान पर बजे नगाड़े। 
बिजली ने भी झण्डे गाड़े। 
नाच रही परियों की रानी,
घुटनो-घुटनो पहुँचा पानी। 
भरे लबालब ताल –तलैया। 
सर-सर –सर दौड़ेगी नैया। 
झट से अगर बना दे नानी,
ओहो, हुआ कमर तक पानी। 
कहाँ सो गए सूरज दादा। 
ओढ़े भीगा हुआ लबादा। 
सर्दी खा जाने की ठानी?
कंधे –कंधे तक है पानी। 
पानी –पानी –पानी –पानी। 
धरती से अंबर तक पानी। 
अब तो गैया –भैंस डुबानी,
बोल मेरी मछली कितना पानी?
	
	