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ब्रजेस्वरि-गोद में गोबिंद / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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ब्रजेस्वरि-गोद में गोबिंद।
चकित दृष्टिस्न्, पद-कमल अँगूठा चूसत मुख-अरबिंद॥
बालमुकुंद, केस घुँघुरारे, सिर सिखिपिच्छ अनूप।
बाजूबँद, बघनखा, करधनी, पग पैजनि अतिरूप॥
निरखि रही मैया मुख-कमलहि स्नेह-दृगनि, मृदु हास।
कोमल कर सौं दिए सहारौ मन अतिसै उल्लास॥