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भटकन / कात्यायनी

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मैं साँसों से चोटिल
स्पर्शों से
लहूलुहान।
कविता से
पाती हुई
सिर्फ़ बेगानापन।
निर्मम आलोचनाओं के
सुखों की तलाश में
भटकती
अकेली नहीं शायद।

रचनाकाल : सितम्बर, 1999