भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भरम / लक्ष्मीनारायण रंगा
Kavita Kosh से
सपनां रा मिरगला
भरता रैया
कुळाचां
रात भर
बाळू री लैरां नैं
पाणी समझर,
पण तोड़ नाख्यो
उणां रो दम
दिनूगै री
किरणां री लैरां