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भरे पेट को पानी / नईम
Kavita Kosh से
भरे पेट को पानी,
भूखे को दे रोटी-मौला दे! दाता दे!!
धरती और अकाश न माँगूँ,
या ईश्वरीय प्रकाश न माँगूँ;
माँगे हूँ दो गज ज़मीन बस,
मैं शाही आवास न माँगूँ;
पाँवों को पनही,
परधनियाँ मोटी-झोटी-
सिर को साफा, छाता दे!
मज़हब नहीं भीख का कोई,
भीख न होती ब्राह्मण भोई।
अमरीका, यूरोप भले दे-
होती नहीं दूध की धोई।
इनके पाँसे हैं
तो हैं हम उनकी गोटी-
हमंे हमारा त्राता दे!
नियम युद्ध के दफ़्न हो गए,
पुरखे जाने कहाँ सो गए?
युद्ध क्षेत्र में खड़े हुए दिन,
कृष्ण न जाने कहाँ खो गए?
स्वजन पड़ौसों में
बैठे भर रहे चिकोटी,
शबरी और सुजाता दे।