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भरोसा अभी बचा है / अनुपमा तिवाड़ी
Kavita Kosh से
कलम,
अब बस मुझे
तुम पर भरोसा है
क्योंकि,
अब बलात्कारी,
बाइज्ज़त बरी हो रहे हैं
अब हत्यारे,
जेल की चौखट भी नहीं देख रहे हैं
अब सवर्ण,
देशभक्ति की कमान संभाल रहे हैं
अब चोर,
कुर्सी पर ससम्मान विराज रहे हैं
अब पुलिस,
मनचाहा कहलवा रही है
अब अदालतें,
कुछ और ही फैसले सुनाने को मजबूर हो रही हैं
अब कानून,
धाराओं में टूट कर तरल हो रहा है
अब गवाह,
लचीले हो रहे हैं
अब पड़ौसी,
मुझे चुप कर रहे हैं
अब मन,
हार रहा है
कलम,
ऐसे समय में
बस मुझे तुम पर भरोसा है
कि तुम दृढ रहोगी
धारदार रहोगी
जो तुम,
ऐसी नहीं रहीं तो मैं
सारी कविताओं,
को एक दिन पानी में बहा दूँगी