भर्तृहरि की गुफ़ा / तेजी ग्रोवर
(आर्लीन और शैलेन्द्र के लिए)
उस दिन
शहर को फूलों से जलाया गया
हम खाना साथ लेते गये थे
और उसे अमरूद की गन्ध से जो घृणा थी, हमें
रास आ रही थी
वह घुटने में थकान भरे घोड़े को गाजर खिलाने की बात
भर करती रही
शनि के काले बुत के सामने कैमरा धूप में नाच उठा था
एक मुण्डे हुए पीपल में नटराज की टहनियाँ दिख
गई थी मुझे
एक बच्ची भी थी
कुछ नहीं खाने की उस दिन उसकी बारी थी
और उसका बेहद कवि पिता
जो गुफ़ा के बाहर मट्ठा पीते हुए हँस रहा था
इस पन्ने की पहली दो पंक्तियाँ
इस गुफ़ा की कहानी पढ़ने में हुई उसकी चूक से बनी हैं
उस दिन
शहर को फूलों से जलाया गया