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भाई की चिट्ठी / एकांत श्रीवास्तव
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हर पंक्ति जैसे फूलों की क्यारी है
जिसमें छुपे काँटों को वह नहीं जानता
वह नहीं जानता कि दो शब्दों के बीच
भयंकर साँपों की फुँफकार है
और डोल रही है वहाँ यम की परछाईं
उसने लिखी होगी यह चिट्ठी
धानी धूप में
हेमंत की
यह जाने बिना
कि जब यह पहुँचेगी गंतव्य तक
भद्रा के मेघ घिर आए होंगे
आकाश में।