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भागीरथी का ताण्डव / अमरेन्द्र
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भागीरथी है अपने घर में गुस्साई-पगलाई
काली का अवतार लिए कलियुग पर नाच रही है
चट्टी-चट्टी पर यम की जा पाती बाँच रही है
देख दृश्य यह मृत्यु काल की आँखें हैं पथराई ।
सौ बाँसों से ऊपर आ कर धाराएँ लहराईं
देखा होगा शायद मनु ने जल का विकट प्रलय यह
हिम के गिरि पर ऐसा फैला देव विभव का क्षय यह
ऋषियों की इस तपोभूमि के चेहरे पर है झाँईं।
किन प्रेतों की नजर लगी है जिससे घन हैं पावक
बार-बार मारण से पर्वत की चट्टानें मूर्छित
देववृक्ष हैं किस राकस से ऐसे पत्थर-शापित
कवि-कविता सब शेष हो गये, शेष बचे हैं भावक।
यही रहा तो जल समाधि धरती की पूरी होगी
जिसमें होंगे: भोगी, भक्षक, चिंतक, नरपति, योगी ।