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भाजती रात / इरशाद अज़ीज़
Kavita Kosh से
भाजती जावै
रात-दिन
कूकती रैवै
भतूळियो उठावै
मनचायो हुकम सुणावै
रोवाणै, पुचकारै
खावण दूजा अर
दिखावण रा दूजा दांत है
दिन मांय जठै रात ई रात है
इसी दुनिया थांरी
थांनै ईज मुबारक!