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भीतर पूरा गाँव / राजा अवस्थी

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भीतर-भीतर बसा रखा है
हमने पूरा गाँव।
यहाँ आओ, है शीतल छाँव।

सावन बरसे, भादों गरजे,
क्वांर परोसे घाम;
कातिक दीप जलाये बैठा
लिखे रोशनी नाम;

कौन अँधेरे में भटका फिर
किसको मिला न गाँव
यहाँ आओ है शीतल छाँव।

मीठी-मीठी धूप गुनगुनी
सरसों फूली पीले खेत;
रंग-गुलाल उड़ाता फागुन
खलिहानों में गाता चैत;

किसकी प्यार-पीर दहकी है
किसके लहके घाव।
यहाँ आओ है शीतल छाँव।

रुनझुन-रुनझुन-रुनझुन गाती
गपशप करती शाम;
प्यास खड़ी मिलती पनघट की
अक्सर उँगली थाम;

किसकी प्यास मरी-मुरझाई
किसको मिले न ठाँव।
यहाँ आओ है शीतल छाँव।

पनिहारिनें नहीं आतीं अब
किस्से ले-लेकर;
किससे बात करे अब पनघट
सपने दे-देकर;

भीतर तक भर गया कहाँ से
इतना अधिक दुराव।
यहाँ आओ है शीतल छाँव।