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भूख / जितेन्द्र सोनी
Kavita Kosh से
भिक्षा पात्र
बजाती
वह अँधी बुढ़िया
दो दिनों से
भूखी थी
क्योंकि
उसे एक पैसा भी
भीख में
नहीं मिला था
वह परेशान भी थी
क्योंकि
पिछले दो दिनों से
एक नई भिखारिन
कुछ ही दूरी पर
बैठने लगी थी
अँधी बुढ़िया
जानती थी
उसकी भीख
अब
उस नई भिखारिन के
हिस्से में आती है
जबकि
उसकी तो
आँखें भी स्वस्थ हैं
वह सोचने लगी
कि ऐसा क्यों ?
कुछ समय के बाद
उसके अनुभवी दृष्टिकोण ने
उसे इसका
कारण बता दिया
जो था कि
नई भिखारिन
अभी जवान थी !