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भूख का स्वाद / अरविन्द श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
कुलबुलाती है अंतड़ियाँ
जब होता हूँ भूखा
मैं गीत गाने से नहीं चूकता !
मेरी हड्डियाँ बिखेरती है संगीत
बजती हैं कड़-कड़ा-कड़
पसलियाँ मारती है थाप
आँसूओं की लय पर
मैं गाता हूँ गीत
बिल्कुल उटपटांग किस्म का
इसलिए भी कि बच्चे मेरे गीतों की नक़ल
नहीं कर पाएँ
भूख का स्वाद
होता है कैसा
वे गीतों में नहीं गुनगुनाएँ ।