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भोर / महेन्द्र

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अन्हारक कोरसँ
सद्यः स्खलित
दुधमुँहाँ बच्चाक ठोर सन लाल
खिलखिलाइत कोमन भोर !
उतरि गेल अछि।
उतरि गेल अछि
बाँसक फुनगीकें चिरैत धरती पर
धरती पर ओछाओल
दूभिक टुस्सीक नख-दर्पणमे
प्रतिबिम्बित भ’ गेल अछि
कतोक लालमुँहाँ ठोर
सद्य-स्खलित
अन्हारक कोरक बच्चा। ई भोर !

ई भोर धीरे-धीरे भ’ रहल अछि नमहर
सागरक लहरि सन ऊँच
बाढ़िक पानि जकाँ उन्मुक्त
बिना खनहनक गाड़ी सन अनियंत्रित
ताबा सन धीपल, आक्रोशित, ई भोर !
ई भोर !
पल-प्रतिपल निन्नसँ माँतल
सद्यः स्खलित
अन्हारक कोरमे
पुनः सूत’ जा रहल अछि।