मगर तुम्हीं बोलो / कुमार राहुल
किसी से कहा है न किसी से कहेंगे
चलो तय हुआ था तो चुप ही रहेंगे
वो लम्हा कि जिसमें हम अहल-ए-वफ़ा थे
हम दोनों जवां थे हम दोनों रवां थे...
मगर तुम्हीं बोलो...
अंदोहो वफ़ा के ये किस्से ये नग्में
हमारे ही हिस्से क्या आने थे सच में
हमीं तो न होंगे इक मौकूफ तुमपे
रहा होगा तुम्हारा भी इख्लास कुछ तो
हमीं बिखरे होंगें न यूँ फ़र्द हो के
बही होगी आँखों से कहीं यास कुछ तो
फिर क्यूँ तुम्हारी तज़ाहुल के हिस्से
हमीं इक आने लगे हैं अकेले
फिर क्यूँ हमारी कशाकश के किस्से
हमीं को जलाने लगे हैं अकेले
हमीं क्या दाइम जरर में रहेंगे
यूँ सुलगा करेंगे शरर में रहेंगे
ये तो न थी पेशानी हमारी
ये वादे वफा ये नातवानी हमारी
सो माज़ूर हो के ये कहते हैं फिरते
किसी से कहा है न किसी से कहेंगे
चलो तय हुआ था तो चुप ही रहेंगे
मगर तुम्हीं बोलो...