भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मतवाला यौवन / केदारनाथ मिश्र 'प्रभात'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अरे ओ, मतवाला यौवन!
अरे! उच्छृंखल! वीर-मदन!

अग्नि की लघु-लहरों में बैठ
भूल जा, उद्यानों की याद;
पहर काँटों का सुंदर-ताज
हृदय-प्याले में भर उन्माद!

गरल पी, कर प्रचंड-गर्जन!
अरे ओ, मतवाला यौवन!

झूमकर मत्त-गजेंद्र-समान
कटीले पथ पर बन निर्भय;
लिये कर में त्रिशूल-यम-दंड
चमक विद्युत्-सा चल निर्दय!

ध्वंस कर कुत्सित-पाप-सदन!
अरे ओ, मतवाला यौवन!

त्याग दे स्वर्ण-वस्त्र-सुकुमार
त्याग दे सकल-विभूषण-भार;
ग्रहण कर केशरिया परिधान
ग्रहण कर विद्रोही! तलवार!

लगा ले ललित-रक्त-चंदन!
अरे ओ, मतवाला यौवन!

बोल बम-बम-बम हर-हर-हर
विकंपित हो जाये अम्बर;
हिले संसार-हृदय थर-थर
अरे प्रलयंकर! शिव-शंकर!

मचा दे भीषण आन्दोलन!
अरे ओ, मतवाला यौवन!
5.1.29