भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मनुहार / रामगोपाल 'रुद्र'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ओ कलाकार की काव्य-कला कल्याणी!

टुक बोल, बोल,
री स्वर-किलोल!
अनमोल पँखुरियाँ खोल,
पतझर मेँ मेरी आज, सुधामयि! जीवन का मधु घोल,
टुक बोल प्रेम की वाणी,
ब्रह्माणी!
ओ कलाकार की काव्य-कला कल्याणी!

हर एक डगर,
छवि से दे भर,
लहरा रस-रूप-लहर,
मरु को भी तू कर दे अपने मधु के कण से ऊर्वर,
बरसा करुणा का पानी,
वरदानी,
ओ कलाकार की काव्य-कला कल्याणी!

जग दीन-दलित,
दुख-द्वंद्व-गलित,
अपने ही पापों से पीड़ित,
आश्रित है तेरे द्वार आज, खोकर अपना जीवन-अमृत;
दे मान उसे, हे मानी!
गीर्वाणी!
ओ कलाकार की काव्य-कला कल्याणी!