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मन की चादर / अमरजीत कौंके
Kavita Kosh से
निचोड़ दो मुझे
गीले कपड़े की तरह
निचुड़ जाए सारी मैल
जो मन की चादर पर लगी
द्वेष, निर्मोह
झूठ, कपट
फरेब की मैल
जो मन की चादर जमी
जन्म हो गये धोते इसे
धुली बार-बार
हज़ार बार
लेकिन उतरती नहीं मैल
अच्छी तरह
धो डालो
मन मेरे की
मैली चादर
निचोड़ दो
अच्छी तरह इस को
और दे दो नील
चमक उठे एक बार फिर से
मेरे मन की सफेद चादर।