भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मन के नीड़ / श्रवण कुमार सेठ
Kavita Kosh से
यहां-वहां बिखरे
थे तिनके,
चिड़िया ले आई
कुछ चुन के,
आपस में तिनकों
को बुन के
नीड़ बनाई अपने
मन के।