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मन लुभाती नहीं / प्रेमलता त्रिपाठी
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लेखनी मन लुभाती नहीं है।
मातु आशीष पाती नहीं है।
हंस मानस जगाते नहीं हम
प्यास माते बुझाती नहीं है।
दीप पथ पर जलाया नहीं यदि,
रोशनी जगमगाती नहीं है।
ज्ञान आलोक देता सदा पर,
मन पिपासा अघाती नहीं है।
लोभ रसना जगाती रही यदि,
लालसा तम मिटाती नहीं है।
हर्ष बाँटे यहाँ से वहाँ तक,
दें खुशी जो समाती नहीं है।
प्रेम पथ के सदा पाथकी हम,
राह कटुता सुहाती नहीं है।