भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
महकी बेला / नचिकेता
Kavita Kosh से
महकी बेला
नागफनी से
बिंधकर भी महकी बेला
तेज धूप है
चलती गर्म हवा भी है
पर, इसकी परवाह न इसे
जरा भी है
हरसिंगार से
आंख मिला टहकी बेला
घाम, गीत
वर्षा का डर है इसे नहीं
गीतों जैसा हासिल
स्वर है इसे नहीं
पंख बिना भी
चढ़ छत पर चहकी बेला
खुशबु इसकी
दबे पांव आती घर में
रच देती आसंग आंख के
काजर में
फिर भी ढूंढ
नहीं पायी गंहकी बेला