भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
महानगर / त्रिनेत्र जोशी
Kavita Kosh से
भैय्या
महानगर मत आना
बहुत तंग करती हैं दो चीज़ें-
संविधान और पुलिस
और ख़ुद वह बेशुमार चौराहों में
भटका देने वाला शहर