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महाराज भवानी ब्रह्म भुवनकी रानी ॥ध्रु०॥
आगे शंकर तांडव करत है । भाव करत शुलपानी ॥ महा०॥१॥
सुरनर गंधर्वकी भिड भई है । आगे खडा दंडपानी ॥ महा०॥२॥
सुरदास प्रभु पल पल निरखत । भक्तवत्सल जगदानी ॥ महा०॥३॥