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महावर के फूल / प्रेमशंकर शुक्ल

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घर-गिरिस्ती के काम-धाम से थोड़ी फुरसत पा

आंगन के बीचों-बीच बैठ गई हैं

एक समूह में


कटोरी में अभी-अभी घुला महावर

रखा जा चुका है बीच में

और दिखाई दे रही है अब

पाँवों की पाँत


सुकुमारिता से कटोरी में तर्जनी को बोर

कोई अपने पाँव में

रेखाओं को लयकारी देने में मगन है

पाँव पर महावर के फूल खिलाते

कोई दे रही है सुन्दरता को जीवन

कोई रंगा हुआ पूर्णिमा का चांद

रख रही है पाँव पर

फूल-पत्तियों से भरी बेलें बना रही है कोई

कोई अल्पना-सा रच रही है कुछ

कोई अपनी कल्पना को

महावर का रंग देने में हो रही है विफल

लेकिन कोशिश कर रही है

बार-बार


देह से उड़ चुकी है इस समय थकान

स्थगित हैं अभी घर की मुश्किलें

सभी अपने भीतर की सुंदरता को

रच रही हैं

पाँवों पर

उन पाँवों पर--

जो हमारे जनपद की देहरी को

रोशन किए हैं रंग से।