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माँ / असंगघोष
Kavita Kosh से
रह कर
तुमसे दूर जाना
कि पास रहना
कितना जरूरी था
तुम्हारा!
जैसे जरूरी है
सांस लेना
और दिल का धड़कना
उसी तरह
तुम्हारा साया भी
जरूरी था
वैसे ही जैसे जरूरी था
तुम्हारा मुझसे प्यार करना।
अपने आँचल में छिपा
दुलार करना,
मेरे लिए
खुद भूखी रह
अपनी थाली से
रोटी बचा मुझे खिलाना।
मेरे बाहर जाने पर
वापसी की राह तकना
देर हो जाने पर
तुम्हारा चिन्तातुर हो
मुझ पर गुस्सा करना।
मेरी पीठ पर बरसी
लाठियों की मार पर
चूल्हें की आँच से
अपना आँचल गर्म कर
सिंकाई करते
हर बार मुझे
संघर्ष के लिए
तुम्हारा प्रेरित करना।
तुम्हारे अलावा
यह सब
कौन करता है?
आखिर माँ
तुम तो माँ हो
तुम्हारे इस आंचल की
मुझे जरूरत है
अब भी
माँ!