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माँ के लिए (एक) / महमूद दरवेश
Kavita Kosh से
शिकंजे में जकड़ा है मेरा हृदय
जल रहा हूँ मैं
फुँक रहा हूँ वियोग की आग में
और धीरे-धीरे
बढ़ रहा हूँ तेरी तरफ़
तेरे दुलार भरे हाथों की ओर
उदासी
सबसे बड़ा दुख है
सबसे बड़ी मौत
कैसे बचा जाए उससे
भला, कहाँ छुपाया जाए अपनी आत्मा को
पसलियों की
पतली दीवार के पीछे
सीने के पिंजरे में बन्द आत्मा
भयभीत है अकेली
और मैं घायल पड़ा हूँ
इस पथरीली ख़ामोशी में
किसी अबोध बच्चे की तरह
अबोध मेरा हृदय
जल रहा है निर्वासन की आग में
आह दर्द ! कितना दर्द है वहाँ ...
ओ माँ ! क्या करूँ मैं
अचानक
डूबते दिल के ऊपर
फड़फड़ाने लगा एक सफ़ेद पंख
आशीर्वाद माँ का
अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय