भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
माँ के हाथ / मक्सीम तांक
Kavita Kosh से
उन्हें चूमा धरती ने
अपने रेतीले होंठों
और बालियों से ।
आकाश ने उन्हें चूमा
गरमी, हवा और बारिश से ।
उनकी पारदर्शी ताज़गी का बड़ा इच्छा छिना
धागों ने
उनींदी रातों में ।
धागों ने न जाने
कितनी रोशनियों को राख किया
और कितने तारों को ।
उन काली और गहरी झुर्रियों की
आसान नहीं है गिनती करना
गो हमारी यात्राओं ने
उन पर चिन्ह छोड़े हों ।
यह सिर्फ़ तभी होता है
जब हम एक साथ होते हैं
जब मेज़ पर माँ अपने हाथ रखती है
हमारे घर और हृदय में
उजाला हो जाता है जैसे धूप से ।
रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह