भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मां: 1 / मीठेश निर्मोही
Kavita Kosh से
म्हांनै अमर बणावण री
आस
पल-पल मरै !
म्हांरै सपनां नै
थेपड़ता
छिण-छिण
जागै।
अंधियारा नै अळगौ
उछेर
नित-हमेस
सूरज भळकावै थूं।
धर मजलां धर कूंचां रै
आडै-अंवळै मारग
झीणी मुल-मुल
बण
हालरियौ हुलरावती
म्हांनै चांदा लग चाढै
थूं।