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माटी के अँजोर / जितराम पाठक

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सूप भरि रूप के
सनूख भरि सोहुआ में
सानल सनेहिया सलोर
आन अवरू अपना के
नेह-नाता गरगट
लहना के बाटुरे बटोर।
सोनवा के जाल में
घेराइल सारी दुनिया
योग के वियोग में पेराइल सारी दुनिया
किरन के बान
केहू मारेला अनेरिया
माटी के सुवास छिलरावेला अहेरिया
देहिया के नाता नधले बा
झकझोरिया
अन्हरा के आँखि में उगल बा अँजोरिया
माटी के सुवास मीठ
काँट लेखा हरके
मन अँउजाला
त पराये लागे फरके
आपन कहाइ के
बुझात बाटे आन अस
कवल करेजवा कठोर।
कहीं बाटे बाढ़ि
कहीं तिल-तिल छीजना
हरि के हुलास से
सँवारल सिरिजना
सून बा सरगवा
ई झूठहीं उतान बा
मिटउ महुरवा के कतना गुमान बा
मनवाँ
अनेरे मटिए में लपटाता
घूमि घूमि
एकेरे में आइ के समाता
जल ना सहाला
जंजाल नीक लागे
मटिए के देवता सुभाव नाहीं त्यागै
जेकरा बुझाइ ऊहो बसे बैकुण्ठवा में
हमरा त माटी के अँजोर।