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मिटता रहे कुविचार है / प्रेमलता त्रिपाठी
Kavita Kosh से
शिक्षा सतत ही चाहिए, मिटता रहे कुविचार है।
बहती नदी की धार में, रुकता नहीं पतवार है।
माया जगत करती भ्रमित, तृष्णा हृदय छलती रहे,
निस्सार जीवन जानिये, करना हमें सुविचार है।
चिंतन करें संतप्त हम, ममता हृदय की सुप्त क्यों,
धीरज नहीं अभिशप्त मन, लगता सदा बीमार है।
संयोग सेवा ज्ञान हो, अज्ञानता मिटती तभी,
संतति हमारी है दुखी, शासन विधा लाचार है।
था शांति नारा देश का, संभव नहीं अब हो सके,
अनुबंध कारा तोड़ कर, बढ़ना हमें स्वीकार है।
सीमा सुरक्षित है नहीं, सम्मान अपना खो रहा,
साहस जगाये प्रेम यह, भरना हमें हुंकार है।