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मिटाओ सबब / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
आंख के आंसू
पौंछ भी लूं
भीतर के आंसू तो
...कर ही देँगे नम
यह नमी
दिखेगी नहीँ
मेरा अंतस मगर
जला कर
कर देगी राख
यह राख
एक दिन
ढांप ही लेगी
तुम्हारा महल !
आंसू पौंछने के बजाय
मिटाओ सबब
और
वक्त रहते सीख लो
अंतस पढ़ना
जिस में
उफनता है बहुत कुछ
तुम्हारे विरुद्ध !