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मिनख ! / कन्हैया लाल सेठिया
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आं पगां हिमाळो कोकरियो
हाथां नै समदर एक चळू,
आंख्यां नै कांटा फूल बण्या
आं संगळियां स्यूं किंयां टळूं ?
अै सूरज चांद फिरै फिरता
कुण बैठ अड़ीके सागां नै,
आभै रो डोळ न ढाब सकै
नीचै स्यूं उठती रागां नै,
मैं थमूं जठै ही मजलां है
मैं खोज मांड.दयूं बै गेला,
मैं सुण्या अणसुण्या कर चालूं
नित मौत मिजाजण रा हेला,
कुण जलम्यो म्हारी होड़ करै
धरती पर कोई जोड़ नहीं,
मैं मिनख जठै ना पूग सकूं
बा रची रामजी ठौड़ नहीं।