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मिरे सुख़न पे इक एहसान अब के साल तो कर / शहराम सर्मदी
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मिरे सुख़न पे इक एहसान अब के साल तो कर
तू मुझ को दर्द की दौलत से माला-माल तो कर
दिल-ए-अज़ीज़ को तेरे सुपुर्द कर दिया है
तू दिल लगा के ज़रा उस की देख भाल तो कर
कई दिनों से मैं इक बात कहना चाहता हूँ
तू लब हिला तो सही हाँ कोई सवाल तो कर
मैं अजनबी की तरह तेरे पास से गुज़रा
ये क्या तअल्लुक़-ए-ख़ातिर है कुछ ख़याल तो कर
मैं चाह कर भी तिरे साथ रह नहीं पाऊँ
तू मेरे ग़म मिरी मजबूरी पर मलाल तो कर