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मिलन / सजीव सारथी
Kavita Kosh से
हम मिलते रहे,
रोज मिलते रहे,
तुमने अपने चेहरे के दाग,
पर्दों में छुपा रखे थे,
मैंने भी सब जख्म अपने ,
बड़ी सफाई से ढांप रखे थे,
मगर हम मिलते रहे-
रोज नए चेहरे लेकर,
रोज नए जिस्म लेकर।
आज -तुम्हारे चेहरे पर पर्दा नही,
आज -मेरा जिस्म भी है बेलिबास,
आज -हम और तुम हैं, जैसे दो अजनबी ।
दरअसल,
हम मिले ही नही थे अब तक,
देखा ही नही था कभी,
एक दूसरे का सच ।
आज मगर कितना सुन्दर है - मिलन
आज -जब मैंने चूम लिए हैं
तुम्हारे चहरे के दाग,
और तुमने भी तो रख दी है,
मेरे जख्मों पर –
अपने होंठों की मरहम