भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मिलिजि / मुकेश तिलोकाणी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अचणु थियई
त मिलिजि
हेॾियूं ॻाल्हियूं
चीज़ू,
किथे संभालियां
तूं सिर्फ़
हथु रखिजि
जेको वणई
सो...
सुवालु न पुछिजि,
जवाब कीन ॼाणा।