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मील रो पत्थर / कन्हैया लाल सेठिया

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गरज
गेलां री
पगां नै
कोनी खगां नै
जकां री दीठ में
गिगनार
उडै पांख पसार
पड़यो सपटमपाट
न टेढ़ो न आंटो
न कांकरा न कांटो
जे कठेई कोई
मील रो पत्थर
तो बो
उगतो‘र आंथतो
सूरज !