मुक्तक-16 / रंजना वर्मा
भरा साहस हो जिन में रुख नदी का मोड़ देते हैं
अगर  हों   टूटते   रिश्ते   उन्हें  वे  जोड़  देते  हैं।
भरोसा हैं हमेशा  वे  स्वयं  की  शक्ति पर रखते
प्रलोभन  मोह  माया  की  डगर  को छोड़ देते हैं।।
हम   बहादुर  हैं  हमे  मौत से भी डर न लगे 
बात हो यों कि जमाने को कुछ खबर न लगे।
जान  देने  को  हैं  तैयार  वतन  की  खातिर
देश को  मेरे  दुश्मनों  की  अब  नजर न लगे।
रचयिता सी है माँ मेरी  सुराही  घट  बनाती है
कभी गुड़िया सजाने को सुनहरा पट बनाती है।
बड़ी अद्भुत कला है  हाथ मे  जब तूलिका लेती
करूँ मैं कामना जिसकी उसे झटपट  बनाती है।।
हर किसी का मान कीजिये
व्यर्थ न  अभिमान  कीजिये।
जिंदगी  है  चार  दिन  मिली
कर्म  कुछ   महान   कीजिये।।
सब को खुद पर गुमान होता है
मान   होता   है   दान  होता  है।
तुच्छ   होती  न   वस्तु  है कोई
पर किसे इस का ज्ञान होता है।।
 
	
	

