मुक्तक-40 / रंजना वर्मा
करो माँ बाप की सेवा  उन्ही से मन मिलता है
वही तो जन्म हैं देते  उन्ही  से  ज्ञान मिलता है।
कृपा  माता पिता की हो  तो रब रूठे भले रूठे
धरा पर रूप में उन के स्वयं भगवान मिलता है।।
इस दल से उस दल में इनका  आना जाना है
राजनीति के सिवा बचा अब कौन ठिकाना है।
जब तक नेता रहें स्वार्थ  की राजनीति  खेलें
जनता  की  सेवा  तो  इन का  मात्र बहाना है।।
अगर चाहत है  उल्फ़त  की वफ़ा  करना जरूरी है
जमाना है सगा  किस का  तनिक  डरना जरूरी है।
किया है इश्क़ गर दिल से तुम्हारी आशिक़ी सच्ची
समझ  लो  यार  से  पहले  यहाँ  मरना  जरूरी  है।।
नन्दलाल  तुम्हे  माता  जसुदा  पुकारती है
तेरे  चरणकमल  घर परिवार  वारती  है।
माँ के हृदय की ममता को कौन जान पाया
सुत को विजय मिले  तो  हर बार हारती है।।
तुम को अजीज साथी मिलना व भूल जाना
आओ  कभी  इधर  भी  रस्ता  वही  पुराना।
है  इंतज़ार  अब  भी   हैं   राह   देखते  हम
अब हाथ है  तुम्हारे मिलना या' लौट जाना।।
	
	