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मुक्ता माणिक से अक्षर / प्रेमलता त्रिपाठी
Kavita Kosh से
मुक्ता माणिक से अक्षर को, अंक भरे जो गर्वित है
शून्य भरे प्रतिपल जीवन के, पुस्तक ज्ञान समर्पित है।
मन वाणी से बोझिल जन को, देती जो एक सहारा,
नवल किरण की आभा पुस्तक, करता मन को हर्षित है।
ज्ञान कोष की धारा पुस्तक, स्नात करें मन को पावन,
भरे उजाला तमस हटाकर, करे न मन को दर्पित है।
सागर सुंदर साहित्यांगन, खोजें मन की गहराई,
हैअनमोल धरोहर पुस्तक, मनहर जीवन दर्शित है।
ज्ञान चक्षु खोले यह अनुपम, पुस्तक होती वह दर्पण,
प्रेम बनायें साथी पुस्तक, सब कुछ इसमें वर्णित है।