भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुझे अधिकार नहीं है / विम्मी सदारंगाणी
Kavita Kosh से
मेरे कमरे की खिड़की
कई महीनों से बंद थी।
एक दिन
`चीं चीं´ की आवाज़ सुनी
देखा
काली चिड़िया के तीन बच्चे थे
खिड़की की सलाखों के कोने में।
उनकी माँ बार-बार उड़कर जाती थी
और एक एक दाना ले आती थी।
मैंने सोचा
क्यों न मुट्ठी भर अनाज के दाने रख दूँ।
पर नहीं!
माँ की ममता और खु़द्दारी को
चोट पहुँचाने का
मुझे कोई अधिकार नहीं है।
सिन्धी से अनुवाद : स्वयं कवयित्री द्वारा