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मुठ्ठियों का फर्क / सुरेश बरनवाल

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बंद मुठ्ठियो का
रोटी से रिश्ता
इतना ही / कि
जब वे मेहनत से
जमीन पर लकीरें बनाती हैं
आसमां पर चमकने लगते हैं
रोटियों के चंद टुकड़े।

कुछ और मुठ्ठियाँ
जो बनाते हैं फासले
जमीं और आसमां के बीच
रोटियों को ज़मीं तक
आने नहीं देते।

पहले वाली मुठ्ठियाँ
रोटियों को पाने के लिए
खुले याचक हाथों में बदल
प्रतीक्षा करती रहती हैं
फिर कूकते पेटों को
सहलाने के लिए
कांपती उंगलियाँ बन जाती हैं।