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मुलाक़ात / अनिल जनविजय
Kavita Kosh से
वो मुझे देख
मुस्काई
बोली — आओ
पीढ़े पर बैठाकर मुझे
ले आई नमकपारे
वो खिली-खिली थी
हँसकर कहा — खाओ
मैंने कहा — नहीं,
भूख नहीं है, ना... रे..
पूछा उसने —
कैसी गुज़र रही है?
मैंने कहा —
वर्ष, मास बीते
दिन बीते
पल-छिन ये खारे
बीत गया सागर-सा जीवन
पहुँचा साँझ-सकारे।