भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुश्किलों से जूझता / कमलेश भट्ट 'कमल'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुश्किलों से जूझता लड़ता रहेगा

आदमी हर हाल में ज़िन्दा रहेगा।


मंज़िलें फिर–फिर पुकारेंगी उसे ही

मंज़िलों की ओर जो बढ़ता रहेगा।


आँधियों का कारवाँ निकले तो निकले

पर दिये का भी सफर चलता रहेगा।


कल भी सब कुछ तो नहीं इतना बुरा था

और कल भी सब नहीं अच्छा रहेगा।


झूठ अपना रंग बदलेगा किसी दिन

सच मगर फिर भी खरा–सच्चा रहेगा।


देखने में झूठ का भी लग रहा है

बोलबाला अन्ततः सच का रहेगा।