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मुसकराये तुम / महेन्द्र भटनागर

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मुसकराये तुम, हृदय-अरविन्द मेरा खिल गया,
देख तुमको हर्ष-गदगद, प्राप्य मेरा मिल गया !

चाँद मेरे ! क्यों उठाया
इस तरह जीवन-जलधि में ज्वार रे ?
पा गया तुममें सहारा
कामिनी ! युग-युग भटकता प्यार रे !

आज आँखों में गया बस, प्रीत का सपना नया !

रे सलोने मेघ सावन के
मुझे क्यों इस तरह नहला दिया ?
क्यों तड़प नीलांजने !
निज बाहुओं में नेह से भर-भर लिया ?

साथ छूटे यह कभी ना, हे नियति ! करना दया !