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मृगतृष्णा / रंजना भाटिया

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दो अलग रंग .....


एक मृगतृष्णा
एक प्यास..
को जीया है
मैंने तेरे नाम से
दुआ न देना
अब मुझे..
लम्बी उम्र की
और ..........
न दुबारा...
जीने को कहना


बंधने लगा
बाहों का बंधन..
मधुमास-सा
हर लम्हा हुआ..
तन डोलने लगा
सावन के झूले-सा..
मन फूलों का
आंगन हुआ..
जब से नाम आया
तेरा मेरे अधरों पर
अंग-अंग चंदन वन हुआ |