भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मृतक-सम्मान / तारानंद वियोगी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जीवित पिता कें पानियो ने देलह
मरल पर उपछै छह पानि
घर मे बुढिया़ हकन्न कनै छह
कोना भेटै छह सुख-चैन?
हौ भाइ जोगीलाल
नान्हिटाक जिनगी छह
एना कहिया धरि करबह?
 हौ, ई दुनिञा ओही दिन नहि मरि जेतै
जहिया तूं मरबह....

(ई कविता मैथिलीक आन्तरिक साहित्यिक राजनीतिक बारे मे लिखल गेल अछि। एतय "बुढिया" मैथिली कें कहल गेल छै)